Meri Nanhi Gudiya

This is the first time I am trying to write in Hindi, because I know Samidha would appreciate it. She would say, Ma’am koshish to kijiye. This is for you, my dear.

फूलों सी नाज़ुक थी तुम,
लोहे सी सख़्त भी थी।
हंसी तुम्हारी झरनों जैसी
क्यूं आज फिर मुरझाई सी?

तुम्हें मैं क्या ही बोलू?
माफ़ी मांगू या गिड़गिड़ाऊ?
कुछ ना आए समझ।
लिखना तो तुम्हे बख़ूबी आता था,
थोड़ा हमें भी सिखा देती,
तो कुछ शब्द ढंग के मैं भी बोल पाती।

हमें जो पीनी थी चाय,
कहना था बहुत कुछ बाकी।
इतनी जल्दबाजी तो तुझे कभी ना थी,
फिर क्यूं यू चली गई, साथी?

चेतना तेरी अम्बेडकरी
बुलंद तू सावित्री सी
तारों के बीच सफर कर अब,
मेरी गुड़िया, नन्ही सी।

-Pritha Ma’am

(Thank you Rupal for your immense help and encouragement.)