फिर मिलेंगे

तुम्हें कुछ बताना रह गया समिधा। शायद मैं बताना भूल गई, या शायद मैंने सोच लिया कि अभी हमारे पास काफ़ी वक़्त है। तुमसे कहना था कि तुम्हारी कविता जो तुमने माध्यम में अपनी मीठी आवाज़ में गुनगुनाई थी, उसकी दो पंक्तियां मेरे दिल में रह सी गई हैं: “पर पुणे शहर है ये, यहाँ ना किनारा है और ना ही आसमाँ से बड़ा समुंदर,यहाँ अकेला महसूस नहीं होता…” आज उसी आसमाँ में तुम सफ़र कर रही होगी। तुम्हारी जगह हमेशा से तारों के साथ ही थी, ऊंचाइयों पर। काश तुम्हे बता दिया होता, पर मुझे लगा था कि अभी वक़्त है। अगर तुम ये पढ़ रही हो तो मैं बस कहना चाहती हूं कि शायद तुम मुझे जानती नहीं, पर मेरे लिए तुम हमेशा ‘माध्यम वाली दीदी’ रहोगी।

इक कुड़ी की चार पंक्तियां, तुम्हारे लिए:
सुरत ओस दी परियां वरगी
सिरत दी ओ मरीयम लगदी
हंसदी है तां फूल झरदे ने
तूरदी है तां ग़ज़ल है लगदी…

फिर मिलेंगे।

-Shirin Pajnoo (Batch 2022)